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हिन्दी कहानी

बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताय कहानी

दर्शन होते हैं। 'राजरानी' हिरन की आँखें, तमाशा, मोर्चा आदि इनकी

से इस युग की कहानियों की भाषा उतनी प्रौढ़ और परिमार्जित भाषा नहीं है जितनी

प्रेमचन्द के समान ही विश्वम्भर नाथ शर्मा कौशिक की कहानियाँ में आदर्श और

हैलो दोस्तो मेरी यह कहानी काल्पनिक तो नहीं कही जा सकती क्योकी ये सच मे होता है मेरी यह कहानी हर एसे स्टुडेट के दिल की बात बया करेगी वैसा ट्राय करूगी सभी लोग चाहे कोई भी हो ज्यादा नही मगर पढा तो है ...

लिखते समय कहानीकार यह ध्यान रखता है कि जिस कहानी की वह रचना कर रहा है वह

थे। गरीबों और बेबसों के महत्व के प्रचारक थे। (हिन्दी साहित्य: उद्भव और विकास

साहित्य संसार शिरोमणियों ने हिन्दी कहानी परम्परा में प्रेमचन्द का स्थान

खरगोश, तीतर और खरगोश : पंचतंत्र की कहानी

है। इसलिए उसकी कहानी भी आधुनिकता की पक्षधर हो गई है। शिल्प की दृष्टि से नयी

कहानी लिखने का भी प्रयास किया। कहानी कला को केन्द्र में रखकर वर्तमान के समालोचक

प्रसार द्विवेदी का विचार है कि- "यह मुस्लिम (फारसी) प्रभाव की अन्तिम कहानी

अगर कबरी बिल्ली घर-भर में किसी से प्रेम करती थी तो रामू की बहू से, और अगर रामू की बहू घर-भर में किसी से घृणा करती थी तो कबरी बिल्ली से। रामू की बहू, दो महीने हुए मायके से प्रथम बार ससुराल आई थी, पति की प्यारी और सास की दुलारी, चौदह वर्ष की बालिका। भंडार-घर भगवतीचरण वर्मा

पूर्व भी भारत वर्ष में कहानी का अस्तित्व था, लेकिन अंग्रेजों के भारत आगमन के पश्चात् हिन्दी कहानी जिस रूप

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